
आपका ब्लॉग पढकर काफी अच्छा लगा! इन्टर्नस् से काफी कुछ सीखने को मिलता हैं हमें..... सीधे शब्दों में कहें तो जनरेशन गैप करने का अच्छा मौका...... कुछ इन्टर्न सच में काफी मेहनती थे..... कुछ स्लो लर्नर की तरह...... कुछ तो शायद ही पत्रकारिता में अपना करिअर बना पाए.... पांचो उंगलिया एक समान नहीं होती! मेहनत करनी पडेगी...... टक्कर देते रहना होगा...... जब तक दरवाजा खुल ना जाए.....।
इन्टर्न्स की एक अलग दुनिया होती हैं! ग्लैमर, कुछ करने की इच्छा..... लेकिन समझ में नहीं आता कि ये कुछ होता क्या हैं? करिअर की लडाई में अगर अच्छा गाइडन्स नहीं मिला तो पूरा करिअर चौपट..। कई इन्टर्न्स आते हैं उन्हे कुछ पता नहीं होता ऐसे हम कहते...... वो कुछ पता करने की कोशिश नहीं करते! पत्रकारिता में आपको हमेशा आपके कान, नाक, आँखे दिल - दिमाग खुला रखना पडता हैं! अपना ट्रैक खुद चुनना पडता हैं! मॅच्युरिटी तो उम्र के साथ आती हैं, लेकिन हम पत्रकार हैं, समाज को दिशा दिखाने वाले..... लोगो की उम्मीद होती हैं कि हमने हाथ में कलम - बूम पकड़ा हैं तो हम मॅच्यूअर होंगे ही और इस उम्मीद में गलत कुछ भी नहीं हैं!
प्रिंट में पत्रकार मॅच्यूअर होते वक्त दिखाई नहीं देते क्योंकि मॅच्यूअर्ड होने के बाद ही उन्हे नाम मिलता हैं! हमारे साथ वैसा नहीं हैं.....हम नौकरी के पहले दिन से ही लोगों के सामने होते हैं! हमें नौकरी के पहले दिन से नाम मिलता हैं..... पहचान मिलती हैं...... अच्छी - बुरी हर तरह की......। काफी मेहनत और लगन की आवश्यकता हैं इस काम को निभाने में...... निजी जिंदगी नर्क बन सकती हैं...... एक अच्छे पत्रकार को एक अच्छा बैलेन्स इन्सान भी बनना चाहिए! मैं काफी कम बोलता हूँ! क्योंकि सामने वाले आदमी को समय देना चाहिए ऐसा मैं मानता हूँ! जब तक जरूरत ना हो तब तक किसी को टोकने का कोई मतलब नहीं होता! गलतियां करने देनी चाहिए क्योंकि उसी से आदमी सीखता हैं.। गलतियाँ करने की उम्र में गलतियाँ की जाए तो वो माफ हो सकती हैं! अगर आप वो उम्र खो देते हैं, तो आपकी गलतियों की कोई माफी नहीं होती! उदाहरण के तौर पर अगर मैं कोई गलती करता हूँ तो मेरी सजा कुछ और हो सकती हैं जो कोई सोच भी नहीं सकता! शायद कोई गलती आपके पूरे करिअर के ग्राफ को बदल सकती हैं!
हाँ मैं गलतियाँ बताता जरूर हूँ! लेकिन मुझे जितने भी इन्टर्न्स मिले हैं, उन्होंने सूचनाओं को पॉजिटीवली लिया हैं! यहीं बात मुझे अच्छी लगी! टीवी पत्रकारीता में आपको तेज और स्मार्ट होना पडता हैं! मैने जितने भी इन्टर्न्स देखे हैं वो मिडलक्लास मानसिकता से जूझते हुए दिखाई दिए..... एक ओर कॉन्फिडन्स डगमगा जाता हैं! नसें खिंच जाती है! बोलती बंद हो जाती हैं! गला सूख जाता हैं! दिमाग में सब कुछ सेट होता हैं, पर बोल नहीं पाते!
तो दूसरी ओर सभी चीजों का कॉन्फिडन्स के साथ सामना करते हुए लड़के- लड़कियाँ..... दिमाग में कुछ हो ना हो पर जुबान कभी डगमगती नहीं.... ओर न ही बोली लडखडाती है! कोई बात नहीं..... दूसरी कैटेगरी के लोग लाइफ में कभी ना कभी फ़ेल हो सकते है! लेकिन जिसके दिमाग में सब कुछ सेट हैं, दिमाग सही दिशा में चल रहा हैं, उसे कोई मात नहीं दे सकता! लाइफ में कॉन्फिडन्स कमाया जा सकता हैं दिमाग नहीं.......
दिमाग पर भरोसा रखो..... रिस्पॉन्स टाइम की कसरत करना शुरू करो...... किस घटना पर आपका दिमाग कितने देर में कार्यान्वित होता हैं, और कितने देर में आप आउटपुट देते हो इस पर आपका टेलिविजन का करिअर निर्भर हैं! बाकि के लोगों के लिए प्रिंट से अच्छा कोइ रास्ता नहीं हैं! नए वर्ष में आपको और ज्यादा सीखने को मिले इसी अपेक्षा के साथ विदा लेता हूँ! और आखिरी बात...... नरेंद्र साउथ इंडियन नहीं बल्कि मराठी हैं!
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं......
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